बाजार के उतार-चढ़ाव में कैसे बचाएं अपना म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो?- जानिए बड़े निवेशको का गुप्त फॉर्मूला!

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बाजार के उतार-चढ़ाव में कैसे बचाएं अपना म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो?- जानिए बड़े निवेशको का गुप्त फॉर्मूला! How to rebalance mutual fund portfolio in volatile market – अस्थिर बाजार (volatile markets) निवेशकों के लिए चिंता का कारण बन सकते हैं। ऐसे समय में यह समझना मुश्किल हो जाता है कि अपने वित्तीय लक्ष्यों पर कैसे बने रहें।

लेकिन म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो को संतुलित (rebalance) करना एक ऐसा तरीका है जिससे आप अपने निवेश को सही दिशा में रख सकते हैं। यह लेख आपको बताएगा कि पोर्टफोलियो को संतुलित करना क्यों ज़रूरी है और इसे कैसे किया जा सकता है।

Table of Contents

क्या है रीबैलेंसिंग पर खबर

हाल ही में एक चर्चा में, एसबीआई म्यूचुअल फंड के डिप्टी एमडी और जॉइंट सीईओ डीपी सिंह और आनंद राठी वेल्थ के डिप्टी सीईओ फिरोज अज़ीज़ ने बताया कि जैसे-जैसे शेयर बाजार में सामान्य से अधिक उतार-चढ़ाव आ रहे हैं, कई म्यूचुअल फंड निवेशक यह सोच रहे हैं कि अपने निवेश को सुरक्षित और बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाएं।

हाल की कुछ गिरावटों के बावजूद, भारत में इक्विटी फंड्स ने मजबूती दिखाई है, जिसमें ₹41,000 करोड़ से अधिक का निवेश आया है।  इसके अलावा, सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान्स (SIPs) भी लगभग ₹25,000 करोड़ प्रति माह के नियमित निवेश के साथ जारी हैं।

अजीज बताते हैं कि करीब 10% की गिरावट शेयर बाजार में सामान्य है, जो औसतन हर 10 महीने में एक बार होती है। ये गिरावटें शेयर बाजार के काम करने का हिस्सा हैं, और निवेशकों को इनके कारण घबराना नहीं चाहिए। इसके बजाय, उनका सुझाव है कि निवेशक 20 से 25% की बड़ी गिरावटों पर अधिक ध्यान दें, क्योंकि ये कम होती हैं लेकिन निवेश पर बड़ा असर डाल सकती हैं।

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पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग क्या है?

रीबैलेंसिंग का मतलब है अपने पोर्टफोलियो में निवेश को इस तरह से एडजस्ट करना कि वह आपकी लक्ष्यबद्ध संपत्ति आवंटन (asset allocation) के अनुसार रहे। समय के साथ, अलग-अलग म्यूचुअल फंड का प्रदर्शन अलग हो सकता है, जिससे आपकी योजना का संतुलन बिगड़ सकता है।

उदाहरण के लिए, अगर आपका पोर्टफोलियो 60% इक्विटी और 40% डेब्ट (debt) फंड में था और बाजार में तेजी के कारण इक्विटी हिस्सा बढ़कर 70% हो गया, तो रीबैलेंसिंग करके आप इसे फिर से 60:40 कर सकते हैं।

अस्थिर बाजार में रीबैलेंसिंग क्यों ज़रूरी है?

  1. जोखिम और लाभ में संतुलन बनाए रखता है:
    बाजार की उतार-चढ़ाव से आपके पोर्टफोलियो का जोखिम प्रोफाइल बदल सकता है। रीबैलेंसिंग से आप जोखिम और रिटर्न को संतुलित कर सकते हैं।
  2. भावनात्मक निर्णयों से बचाता है:
    अस्थिर बाजार में घबराहट में गलत निर्णय लेना आम बात है। एक व्यवस्थित रीबैलेंसिंग योजना आपको अपनी भावनाओं पर काबू रखने में मदद करती है।
  3. मौके का फायदा उठाने का मौका देता है:
    रीबैलेंसिंग आपको ऐसे समय में अंडरवैल्यूड (कम कीमत) एसेट्स खरीदने और ओवरवैल्यूड (ज्यादा कीमत) एसेट्स बेचने का मौका देती है, जिससे लंबे समय में आपके रिटर्न बढ़ सकते हैं।
  4. वित्तीय लक्ष्यों को बनाए रखता है:
    अगर आप रीबैलेंसिंग नहीं करेंगे, तो आपकी योजना बाजार की स्थिति के अनुसार बदल सकती है, जिससे आपके लक्ष्य प्रभावित हो सकते हैं।

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पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग कब करें?

रीबैलेंसिंग के लिए कोई एक तय समय नहीं है, लेकिन नीचे दिए गए कुछ संकेत बता सकते हैं कि यह सही समय है:

  1. नियमित अंतराल पर:
    हर 6 महीने या साल में एक बार अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा करें। इससे यह सुनिश्चित होता है कि सब कुछ ट्रैक पर है।
  2. थ्रेशोल्ड आधारित:
    अगर किसी एसेट क्लास का अनुपात आपके लक्ष्य से 5% या उससे ज्यादा बदल जाए, तो रीबैलेंस करें।
  3. बड़ी जीवन घटनाओं पर:
    शादी, नई नौकरी, या रिटायरमेंट जैसे बड़े बदलावों के समय अपने पोर्टफोलियो को अपनी नई जरूरतों के अनुसार एडजस्ट करें।
  4. बाजार की बड़ी चाल:
    बाजार में अचानक तेजी या गिरावट से पोर्टफोलियो में बदलाव आ सकता है। ऐसे समय में रीबैलेंसिंग करना ज़रूरी हो जाता है।

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पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग के स्टेप्स

अपने पोर्टफोलियो की जांच करें

पहले अपने पोर्टफोलियो की वर्तमान स्थिति का आकलन करें। यह जानें कि आपकी संपत्ति कैसे बंटी हुई है—इक्विटी, डेब्ट, गोल्ड, आदि में। फिर इसे अपनी लक्ष्यबद्ध संपत्ति आवंटन (target asset allocation) से तुलना करें।

अपने लक्ष्य आवंटन को तय करें

आपका लक्ष्य आवंटन आपकी उम्र, निवेश की अवधि, और जोखिम सहनशक्ति (risk tolerance) पर निर्भर करता है।

  • अगर आप युवा हैं, तो इक्विटी में ज्यादा निवेश (जैसे 70% इक्विटी और 30% डेब्ट) बेहतर हो सकता है।
  • रिटायरमेंट के करीब पहुंचने वाले लोग डेब्ट फंड को प्राथमिकता दे सकते हैं (जैसे 40% इक्विटी और 60% डेब्ट)।

ओवरवेट और अंडरवेट एसेट्स पहचानें

जानें कि कौन से एसेट्स आपकी योजना से ज्यादा (ओवरवेट) या कम (अंडरवेट) हो गए हैं। उदाहरण के लिए, इक्विटी में तेजी से इक्विटी फंड्स का अनुपात बढ़ सकता है, जबकि डेब्ट का हिस्सा कम हो सकता है।

रीबैलेंसिंग का तरीका चुनें

आप निम्न तरीकों से रीबैलेंस कर सकते हैं:

  • फंड्स स्विच करना: ओवरवेट फंड्स को बेचकर अंडरवेट फंड्स में निवेश करें।
  • नया निवेश जोड़ना: अंडरवेट एसेट्स में नए पैसे लगाएं।
  • एसआईपी रोकना: ओवरवेट फंड्स में एसआईपी बंद करके इसे अंडरवेट फंड्स में ट्रांसफर करें।

टैक्स और खर्चों पर ध्यान दें

रीबैलेंसिंग करने पर आपको शॉर्ट-टर्म या लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स देना पड़ सकता है। साथ ही, कुछ फंड्स पर एग्जिट लोड चार्ज भी हो सकता है। इन खर्चों का आकलन जरूर करें।

रीबैलेंसिंग लागू करें

अपनी योजना के अनुसार बदलाव करें। एक बार में सब कुछ बदलने के बजाय, धीरे-धीरे बदलाव के लिए सिस्टमेटिक ट्रांसफर प्लान (STP) का उपयोग करें।

नियमित समीक्षा करें

रीबैलेंसिंग एक बार की प्रक्रिया नहीं है। समय-समय पर पोर्टफोलियो की समीक्षा करते रहें और जब ज़रूरत हो, रीबैलेंसिंग दोहराएं।

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रीबैलेंसिंग के दौरान ध्यान देने वाली बातें

विविधीकरण बनाए रखें

अपने पोर्टफोलियो को अलग-अलग एसेट्स, सेक्टर्स, और जियोग्राफी में बांटें। यह बाजार के उतार-चढ़ाव के प्रभाव को कम करता है।

एसआईपी और एसटीपी का उपयोग करें

एसआईपी और एसटीपी रीबैलेंसिंग के आसान और व्यवस्थित तरीके हैं। यह आपको बाजार के सही समय की चिंता से बचाते हैं।

ज्यादा प्रतिक्रिया देने से बचें

अस्थिर बाजार में घबराकर बड़े बदलाव न करें। लंबी अवधि के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए निर्णय लें।

वित्तीय सलाहकार से मदद लें

अगर रीबैलेंसिंग को लेकर असमंजस है, तो किसी वित्तीय सलाहकार की मदद लें। वे आपकी स्थिति और बाजार को ध्यान में रखकर सही सुझाव देंगे।

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निष्कर्ष: लंबी अवधि की सफलता के लिए रीबैलेंसिंग जरूरी है

अस्थिर बाजार में अपने म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो को संतुलित करना एक जरूरी प्रक्रिया है। यह आपके जोखिम को कम करता है, रिटर्न को बनाए रखता है, और आपके वित्तीय लक्ष्यों की ओर बढ़ने में मदद करता है। एक व्यवस्थित और सोच-समझकर बनाई गई योजना के साथ, आप अपने पोर्टफोलियो को मजबूत और लक्ष्य पर बनाए रख सकते हैं।

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